Thursday, February 16, 2017

नक्सलवाद का इतिहास-

नक्सलवादी Mao ze dung के विचारों को मानने वाले वाम पक्ष अतिवादी होते हैं । इनका मानना होता है कि बंदूक की नाल से जो पावर निकलता है वही असली पावर होता है।
भारत में राज्यों के विरुद्ध क्रांतिकारी साम्यवाद की शुरुआत भारत में नक्सलवाद का जन्म नहीं है। बल्कि नक्सलवाद का जन्म तो 1946 से 1951 के बीच चलने वाले तेलंगाना आंदोलन में ही हो गया था। आज जो 2014 में तेलंगाना राज्य अलग से उभर कर आया है ,यह आंदोलन 1946 से ही चल रहा है और यह आंदोलन किसानों द्वारा जमींदारों के विरुद्ध चलाया जा रहा था और किसानों को साम्यवादी लोग सहायता कर रहे थे ।आंदोलन का उद्देश्य यह था कि एक अलग तेलंगाना राज्य बनाए जाएं ,जहां पर तेलुगु भाषियों का बहुमत हो। उस दौरान इस विवाद को सुरक्षाबलों की मदद से शांत कराया गया। परंतु तेलंगाना आंदोलन ने नक्सलवादी आंदोलन को प्रेरणा प्रदान की जो कि आगे 1960 से अपना पैर पसारता ही चला गया।
1964 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया से एक धड़ा अलग हो गया तथा कम्युनिस्ट पार्टी(Marxist) का निर्माण किया। इसके अलग होने का कारण यह है कि 1962 के भारत-चीन युद्ध में सीपीआई ने चीन का साथ दिया था ,उससे नाराज होकर इस से एक धड़ा अलग हो गया ।साथी साथ आंदोलन को आगे चलाने पर भी दोनों की राय अलग अलग थी।
फिर 1967 में कांग्रेस ने सीपीआई-एम के साथ मिलकर पश्चिम बंगाल में यूनाइटेड फ्रंट की गवर्नमेंट बना दी। जिस दिन मुख्यमंत्री अजाँय मुखर्जी शपथ लेने जा रहे थे ,उसी दिन नक्सलबाड़ी से एक घटना सामने आ गई ।विमल किसान नामक एक आदिवासी युवा कोर्ट का आदेश लेकर अपनी भूमि पर खेती करने जा रहा था, तभी जमींदारों ने उसे पिटवा दिया। इससे वहां गुस्सायें किसानों ने उल्टे जमींदारों पर ही हमला कर दिया। यह वही समय था जब भारत में बहुत बड़ी खाद्य त्रासदी आई थी तो किसानों का गुस्सा तो स्वभाविक ही था। नक्सलबाड़ी की समस्या जब शांत हुए तब राज्य सरकार ने नक्सलवाद की समस्या को हल करने के लिए कुछ उपाय सोचा जिसमें भूमि सुधार,वितरण समितियां इत्यादि बनाने को था।
1968 में पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लग गया।
मई 1961 में एआईसीसीसीआर ( ऑल इंडिया कॉर्डिनेशन कमेटी ऑफ कम्युनिस्ट रिवोल्यूशन) का गठन हुआ। इस कमेटी ने राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने का निश्चय किया।
1969 में सीपीआईएम में भी फूट पड़ गई तथा वहां से एक और पार्टी उभरकर निकली जिसका नाम कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया(Marxist-Leninist) था। इस पार्टी के नेता कानू सान्याल थे।
1975 में कन्हाई चटर्जी ने माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर (MCC) बनाया।
1970 में चारू मजूमदार ने अपनी किताब मर्डर मेनुअल में आंदोलन को कैसे आगे बढ़ाना है ,जमींदारों को किस तरह से मारना है इन सब के बारे में दिशा-निर्देश किए गए थे ।नक्सली इस किताब को पवित्र ग्रंथ की तरह मानते हैं
1972 में चारु मजूमदार के गिरफ्तार हो जाने तथा बाद में मृत्यु हो जाने के कारण नक्सललवादी आंदोलन थोड़ा धीमा पड़ गया।
1974 में सीपीआईएमएल कभी विघटन हुआ ।उससे सीपीआईएमएल लिबरेशन नाम की पार्टी का उदय हुआ।
1975 में आयरन लेडी इंदिरा गांधी ने अपना आयरन हैंड चलाया तथा नक्सलवादी समस्या को थोड़ा कम करने की कोशिश की। लेकिन वह इस समस्या को पूर्णतया खत्म करने में सफल नहीं हो पाई।
1977 में फिर एक बार विघटन होता है तथा सीपीआईएमएल पीपुल्स वार ग्रुप नामक पार्टी का उदय होता है।
1982 में इंडियन पीपल्स फ्रंट का गठन किया गया जो कि आगे चलकर सीपीआईएमएल लिबरेशन का पॉलिटिकल फ्रंट बना।
1989 में पहली और आखरी बार कोई नक्सली लोकसभा पहुंचा है ।उस नक्सली का संसदीय क्षेत्र में बिहार था।
1994 में इंडियन पीपल्स फ्रंट को बिल्कुल समाप्त कर दिया गया तथा सीपीआईएमएल को पूरी तरीके से राजनीतिक पार्टी घोषित कर दिया गया जोकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास रखता था वही पीपुल्स वार ग्रुप तथा ऑल इंडिया कॉर्डिनेशन कमेटी ऑफ कम्युनिस्ट रिवोल्यूशन इत्यादि सब नक्सलवादी आंदोलन में विश्वास रखते थें।
2004 में एमसीसी तथा पी डब्ल्यू जी का विलय हो गया तथा एक नई पार्टी जोकि सरकार के नियमों के मुताबिक बैन पार्टी है का गठन हुआ जिसका नाम सीपीआई(माओइस्ट) रखा गया। यह संसदीय लोकतंत्र में विश्वास नहीं रखते थे इनका कहना था कि हम साम्यवादी सरकार का में विश्वास रखते हैं ।इनके विलय का एक कारण सन 2000 में झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य का निर्माण होना था ।जब इन राज्यों का निर्माण हुआ तो वहां की पुलिस नक्सलवादियों के विरुद्ध काफी सक्रिय हो गई तो नक्सलवादियों को लगा कि हम आपस में विलय ही कर लेते हैं तब ही जाकर हम इस आंदोलन को आगे बढ़ा सकते हैं ।उन्हें लगा कि संगठन में ही शक्ति है, अतः 2004 में विलय हो गया।
आज हम नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों को रेड कॉरिडोर के नाम से जानते है। यह समस्या पश्चिम बंगाल से शुरू होकर आज भारत के 173 जिलों में अपना पैर पसार चुकि है।

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